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नई दिल्ली: हांडी काठ की ही थी। हां, यह तय हो गया। हरियाणा में हांडी की पेंदी जली थी, महाराष्ट्र में पूरी हांडी खाक हो गई। 'बंटोगे तो कटोगे' के आह्वान ने हिंदू मतदाताओं के मन में एकता की ऐसी मशाल जलाई कि बिना पेंदी की हांडी का रेसा-रेसा जल गया। विपक्ष ने लोकसभा चुनावों में खूब प्रचार किया कि बीजेपी तीसरी बार सत्ता में आ गई तो संविधान और आरक्षण खतरे में आ जाएंगे। इस प्रचार का सबसे ज्यादा असर उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में हुआ था। यूपी में समाजवादी पार्टी (एसपी) ने इतिहास का सबसे अच्छा प्रदर्शन करते हुए बीजेपी को पीछे छोड़ दिया। वहीं, महाराष्ट्र में भी बीजेपी को तगड़ा झटका लगा। वहां कांग्रेस पार्टी ने अपनी 12 सीटें बढ़ा लीं जबकि बीजेपी को 14 सीटें खोनी पड़ीं। अपने गठबंधन एनडीए के लिए 'अबकी बार 400 पार' का नारा देने वाली बीजेपी ही 240 सीटों पर सिमट गई जबकि कांग्रेस ने अपनी टैली में 52 सीटें जोड़कर 99 प्रत्याशियों को जिता लिए। इसी तरह, सपा पांच से 37 पर पहुंच गई- 700% से भी ज्यादा की गेन।
राहुल-अखिलेश की अगुवाई में विपक्ष ने संसद की बैठकों में यही दिखाने की कोशिश की कि अब तो उसे मोदी-शाह की राजनीति को जमींदोज करने का हथियार मिल गया है। राहुल गांधी ने बतौर सांसद शपथ लेते वक्त भी संविधान की लाल किताब को लोकसभा में लहराया। दूसरी तरफ, अखिलेश यादव पीडीए (पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक) के अटूट गठजोड़ के प्रतीक स्वरूप सांसद अवधेश प्रसाद को फ्रंट सीट पर अपने बगल में बिठाने लगे। संदेश साफ था- संविधान की रक्षा, जाति जनगणना की मांग और पीडीए की एकजुटता का आह्वान ही विपक्षी राजनीति के धुरी रहेगी।राहुल 'जितनी आबादी, उतना हक' का नारा देकर अपना दावा और मजबूत करने लगे कि वो मोदी सरकार से जाति जनगणना तो करवाकर रहेंगे। दरअसल, उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में संविधान, आरक्षण को खतरे के डर ने दलितों को बीजेपी के खिलाफ कर दिया तो राहुल को लगा कि यह प्रयोग देश के अन्य प्रदेशों में भी आगे बढ़ा तो बीजेपी की हिंदुत्ववादी राजनीति को धराशायी किया जा सकता है। एक तरफ राहुल का आत्मविश्वास बढ़ा तो दूसरी तरफ बीजेपी मनोवैज्ञानिक दबाव में आ गयी। यहां तक कि संघ ने भी जाति जनगणना को सही बता दिया बशर्ते उद्देश्य पवित्र हों।
लोकसभा चुनावों में यूपी-महाराष्ट्र ने विपक्ष को बमबम कर दिया
लोकसभा चुनाव परिणाम ने बीजेपी नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को स्पष्ट बहुमत दिया, फिर भी राहुल गांधी और अखिलेश यादव की जोड़ी ने ऐसा प्रचार किया कि मानो बीजेपी हार गई और कांग्रेस-एसपी वाले गठबंधन ने भारी जीत दर्ज कर ली। राहुल गांधी ने यहां तक कहा कि कांग्रेस को मनोवैज्ञानिक जीत मिली है। उधर, उत्तर प्रदेश में भगवान राम की नगरी अयोध्या वाली लोकसभा सीट फैजाबाद पर बीजेपी उम्मीदवार की हार को हिंदुत्व और राष्ट्रवादी भावनाओं की हार के रूप में प्रचारित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी गई। अखिलेश यादव ने अपने फैजाबाद सांसद अवधेश प्रसाद को 'अयोध्या का राजा' तक बता दिया।
राहुल-अखिलेश के हाथ लगा था हथियार
राहुल-अखिलेश की अगुवाई में विपक्ष ने संसद की बैठकों में यही दिखाने की कोशिश की कि अब तो उसे मोदी-शाह की राजनीति को जमींदोज करने का हथियार मिल गया है। राहुल गांधी ने बतौर सांसद शपथ लेते वक्त भी संविधान की लाल किताब को लोकसभा में लहराया। दूसरी तरफ, अखिलेश यादव पीडीए (पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक) के अटूट गठजोड़ के प्रतीक स्वरूप सांसद अवधेश प्रसाद को फ्रंट सीट पर अपने बगल में बिठाने लगे। संदेश साफ था- संविधान की रक्षा, जाति जनगणना की मांग और पीडीए की एकजुटता का आह्वान ही विपक्षी राजनीति के धुरी रहेगी।राहुल 'जितनी आबादी, उतना हक' का नारा देकर अपना दावा और मजबूत करने लगे कि वो मोदी सरकार से जाति जनगणना तो करवाकर रहेंगे। दरअसल, उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में संविधान, आरक्षण को खतरे के डर ने दलितों को बीजेपी के खिलाफ कर दिया तो राहुल को लगा कि यह प्रयोग देश के अन्य प्रदेशों में भी आगे बढ़ा तो बीजेपी की हिंदुत्ववादी राजनीति को धराशायी किया जा सकता है। एक तरफ राहुल का आत्मविश्वास बढ़ा तो दूसरी तरफ बीजेपी मनोवैज्ञानिक दबाव में आ गयी। यहां तक कि संघ ने भी जाति जनगणना को सही बता दिया बशर्ते उद्देश्य पवित्र हों।हरियाणा विधानसभा चुनाव में टूटा नैरेटिव
मजबूत मनोबल के साथ विपक्ष तो मायूसी की मकड़जाल फंसी बीजेपी हरियाणा के विधानसभा चुनाव में उतरी। राहुल गांधी फिर से चुनावी रैलियों में संविधान की कॉपी लहराने लगे। इधर, बीजेपी उत्तर प्रदेश की गलतियों से सीखकर चुपके से जमीन सुधारने में लग गई। गहन जनसंपर्क अभियान छिड़ा और विपक्ष के नैरेटिव की असलियत से मतदाताओं को रू-ब-रू करवाया। तब तक बांग्लादेश में तख्तापलट हो गया और शेख हसीना की सरकार के खिलाफ छिड़े आंदोलन की आड़ में इस्लामी जिहाद ने हैवानियत का तांडव शुरू कर दिया। बांग्लादेश में इस्लामी कट्टरपंथी निर्दोष हिंदुओं की हत्या करने लगे, मासूम हिंदू लड़कियों का बलात्कार होने लगा, हिंदुओं के पूजा स्थल और घर जलाए जाने लगे। इसी परिदृश्य में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हरियाणा की एक चुनावी रैली में कह दिया- बंटोगे तो कटोगे, एक रहोगे तो नेक रहोगे।हरियाणा की हार में बेपेंदी हो गई काठ की हांडी
योगी के दिए इस मंत्र ने हिंदुओं के मन में गहरी जड़ें जमा लीं। वो बांग्लादेश में देख रहे थे कि कमजोर हिंदुओं पर अत्याचारी मुसलमान किस तरह हैवानियत की हद पार कर रहे हैं। दूसरी तरफ, बीजेपी-संघ के कार्यकर्ताओं ने उन्हें यह भी समझाया कि संविधान-आरक्षण को खतरा दुष्प्रचार के सिवा कुछ नहीं है। उन्होंने मतदाताओं के सामने यह सबूत भी पेश किए कि यह कांग्रेस है जिससे दलित आरक्षण को खतरा है क्योंकि उसकी पार्टी की प्रदेश सरकारों ने दलितों-पिछड़ों के आरक्षण छीनकर मुसलमानों को दिए हैं या देने के प्रयास किए हैं। फिर हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे आए तो साफ हो गया कि राहुल-अखिलेश ने लोकसभा में जिन नैरेटिव्स की हांडी चढ़ाई, वो अब चुनावी परीक्षण की आंच बर्दाश्त नहीं कर पाएगी। जीत के लिए आश्वस्त कांग्रेस को हरियाणा में लगातार तीसरी बार हार का सामना करना पड़ा और प्रदेश ने पहली बार किसी सरकार को लगातार दूसरी बार सत्ता में वापसी का आदेश सुना दिया। हरियाणा की हार में विपक्ष के नैरेटिव्स की हांडी बिना पेंदी की रह गई।लोकसभा में हारकर बीजेपी ने किए सुधार
इधर, बीजेपी समझ गई कि हिंदुत्व के रास्ते पर बेहिचक, बेपरवाह और बेइंतहा विश्वास के साथ बढ़ते रहें तो लोकसभा चुनाव जैसे हादसों से बचा जा सकता है। महाराष्ट्र में योगी आदित्यनाथ फिर फ्रंट फुट पर आ गए। खास बात यह रही कि आरएसएस-बीजेपी ही नहीं, खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पीछे का मोर्चा संभाल लिया। जातियों में बंटो नहीं, एक रहो तभी वोट जिहाद का सामना कर पाओगे- हिंदुओं ने यह मूलमंत्र को गांठ बांध लिया। आज नतीजे सामने हैं- कांग्रेस 101 सीटों पर लड़कर सिर्फ 16 सीटें जीतने की ओर है जबकि उसके साथी दल शिवसेना (यूबीटी) 21 जबकि एनसीपी (एसपी) 10 सीटों तक सिमटती दिख रही है।7 महीने में ही टूट गया साथ
दूसरी तरफ, बीजेपी ने 132 सीटों पर जीत की तरफ कदम बढ़ाकर बड़े-बड़े पॉलिटिकल पंडितों को हैरत में डाल दिया है। उसके साथी दलों शिवसेना और एनसीपी ने भी कमाल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिवसेना ने 55 तो उप-मुख्यमंत्री अजित पवार की एनसीपी 41 सीटों पर जीत की ओर अग्रसर है। शिंदे और अजित के इस शानदार प्रदर्शन का मतलब ही यही है कि महाराष्ट्र में हिंदुओं ने नहीं बंटने की कसम खा ली। तभी तो क्रमशः उद्धव ठाकरे और शरद पवार के प्रति मतदाताओं ने रत्तीभर भी सहानुभूति नहीं दिखाई। उधर, उत्तर प्रदेश की नौ विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में बीजेपी को सात सीटों पर मिली जीत ने अखिलेश के पीडीए फॉर्म्युले को भी क्षणभंगुर साबित कर दिया। कुल मिलाकर कहें तो लोकसभा चुनावों में विपक्ष के चेहरे पर खिलखिलाहट लाने वाले दो प्रदेशों यूपी और महाराष्ट्र ने सात महीने का भी साथ नहीं निभाया।
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